सोमवार, 30 अप्रैल 2012
बढ़ती मांगे,असहाय सरकार ...
प्रशांत भूषण की मध्यस्थता पर आलोचना करने वाले अब शायद स्वयं को कोस रहे होंगे। प्रशांत भूषण ने साफ किया था कि किसी के सर पर बंदूक रखकर चर्चा नहीं होती। और अब वही हो रहा है। कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के सर पर बंदूक रखकर नक्सली अपनी मांगों की सूची लंबी करते जा रहे हैं और सरकार असहाय नजर आ रही है।
डॉ. रमन सरकार पिछले सात-आठ सालों से जिस तरह से चल रही थी। प्रदेश में नौकरशाही हावी थे, उद्योगपतियों की दादागिरी और मनमानी से आम लोग त्रस्त थे। प्रदेश में कोयला, लोहा, जमीन और शराब माफियाओं के जिस तरह से राज के दावे किये जा रहे थे और लगातार नक्सली आगे बढ़ रहे थे उसके बाद यह तय हो गया था कि इस सरकार के पास नक्सलियों से निपटने की कोई ठोस योजना नहीं है। प्रदेश में चल रहे सत्ता व्यापार का दुष्परिणाम आपके सामने हैै। कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के अपहरण के बाद भी सरकार का जो रवैया रहा वह आश्चर्यजनक ही नहीं दूर्भाग्यपूर्ण रहा। नक्सलियों से मध्यस्थता के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं थी और राज में हावी नौकरशाहों ने मध्यस्थता के लिए भी अफसरों की नियुक्ति करवा दी। और सरकार ने भी नियुक्त में देर नहीं की ।
सरकार की तरफ से जिस तरह की रणनीति सामने आई उससे नक्सलियों को और बल मिल गया। पहले दिन की मांगे दिन गुजरने के साथ बढ़ते चली गई और अब तो दो सौ नक्सलियों की रिहाई तक जा पहुची है और अब भी सरकार का यही रवैया रहा तो मांगे बढ़ते चली जायेगी।
कायदे से इस पूरे मामले में पारदर्शीता अपनाये जाने की जरुरत है। नक्सली और सरकारी वार्ताकारों के बीच क्या बात हो रही है इसकी न केवल वीडियो रिकार्डिंग करनी चाहिए बल्कि वार्ता के एक-एक बिन्दू को सार्वजनिक करना चाहिए आखिर प्रदेश की जनता को यह अधिकार है कि वह इस मामले की बारिकियों को समझे और पता करें कि आखिर चूक कहां से हो रही है।
लेकिन पारदर्शीता की दुहाई केवल अपने मतलबों के लिए दी जाती है। और सरकार क्या चाहती है सरकारी वार्ताकार किस तरह से अपना पक्ष रख रहे हैं इसे छुपाया जा रहा है जो राज्य हित में ठीक नहीं है बल्कि नक्सलियों का मनोबल बढ़ाने वाला साबित होगा।
दरअसल पूरे मामले मेें सरकार बैकफूट पर नजर आ रही है जिसका फायदा नक्सली उठाने लगे हैं यदि सरकार नक्सलियों के करतूतों का पर्दाफाश करना चाहती है तो वार्ता को सार्वजनिक करना ही सबसे अच्छा उपाय है इसमें नक्सली भी दबाव में आयेंगे।
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